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इस घरेलू उपचार से दुधारू पशुओं में खत्म होगी किलनी, जूं और चिचड़ की समस्या

कई बार पशुपालकों की यह शिकायत रहती है कि उनके पशु कम चारा खाते हैं, कम दूध देते हैं जबकि वह देखने में स्वस्थ होते हैं। पशुओं में इस तरह के लक्षण तब दिखाई देते हैं जब उनके शरीर में किलनी, जूं और चिचड़ का प्रकोप होता है।  भारत में खासकर दुधारू पशुओं में किलनी, जूं और चिचड़ी जैसे परजीवियों प्रकोप बढ़ता जा रहा है। ये परजीवी पशुओं का खून चूसते हैं, जिससे पशु तनाव में आ जाते हैं। कई बार उनके बाल झड़ जाते हैं। समस्या ज्यादा दिनों तक रहने पर पशु बहुत कमजोर भी जाते हैं। कई बार पशुओं के बच्चों (बछड़े-पड़वा आदि) की मौत तक हो जाती है। किलनी (टिक) छोटे बाह्य-परजीवी (जूं, चिचड़) होते हैं, जो पशुओं के शरीर पर रहकर उनका खून चूसते हैं, जिससे पशुओं में तनाव हो जाता है, जिसका सीधा असर दूध उत्पादन पर पड़ता है।  किलनी को खत्म करने के लिए तैयार किए गए घोल की विधि के बारे में एनडीआरआई के जूनियर रिसर्च फेलो असलम बताते हैं, "इस घोल को तैयार करने के लिए ढाई किलो नीम की पत्ती को चार लीटर पानी में और माला प्लांट (निरर्गुंडी) की दो किलो पत्ती को एक लीटर पानी में उबालना है फिर 12 घंटे तक इसको रख देना है।"